गुरुवार, 1 जनवरी 2009

आतंकी घटनाओं में क्वालिटी

२००८ के अंत शायद देश के लिए सबसे शर्मनाक था॥हम इस संदर्भ में नहीं कह रहे है। कि इस साल के अंत में मुंबई कई होटलों को निशाना बनाया गया॥बल्कि इसलिए कह रहा हूं कि (यहां मेरा ये मानना नहीं है कि मुंबई में आतंकी हमला छोटा था) क्योंकि इस हमले के बाद पेपरों और चैनलों को एक मुद्दा मिल गया भुनाने के लिए। ये मुद्दा केवल चैनलों को ही नहीं बल्कि राजनीतिक दलों को भी मिल गया। चैनलों और राजनीतिक दलों ने मिलकर इस मुद्दे को भुना रहे हैं। ये मै नहीं कह रहा हू बल्कि चैनलों के कामों को से खुद जाहिर होता है। मैं यहां ऐसे आतंकी हमले का जिक्र करना चाहता हूं, जो किसी होटल में नहीं या न ही किसी मेट्रो सिटी में हुआ, ये हमला हुआ कश्मीर में। यहां सेना और आतंकियों में ३१ दिसंबर से ही मुठभेड़ जारी थी, लेकिन ये घटना चैनलों के लिए राष्ट्रीय महत्व की तब तक नहीं हुई, जब तक कि इस मुठभेड़ में सेना के जवान और कर्नल शहीद न हो गए। जवानों के शहीद होने पर ये घनटा देश पर हमला हुआ, चैनलों की नजर में किसी भी आतंकी घटना तब तक कोई बड़ी घटना नहीं होती जब तक कि उसमें कुछलोगों की मौत न हो जाए। २००९ के पहले ही दिन असम में तीन धमाके हुए, और कई लोगों की जाने गई। लेकिन चैनलो और देश के लिए उतनी बड़ी नहीं थी, इसके दो कारण है, एक तो ये आतंकी घटना किसी मेट्रो में नहीं हुई और दूसरी इस घटना में राजनीतिक दल ज्यादे इंटरेस्ट नहीं ले रहे थे। मै अब बात करता हू कश्मीर में हुए आतंकी घटना की जहां चैनलों की नजर तब पड़ी जब इस घटना में सेना के जवान शहीद होने लगे। तब जाकर ये हमला देश पर हमला माना गया।