शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

राज ठाकरे के कदम से परेशान क्यों ?

महाराष्ट्र में राज ठाकरे उत्तर भारतीयों के खिलाफ आग उगल रहा है....तो लोग परेशान हो रहे हैं....इसे उत्तर भारतीयों के खिलाफ बताया जा रहा है...लेकिन मैं मानता हूं कि...ये तथा कथित अभियान उत्तर भारतीयों के खिलाफ नहीं....यूपी और बिहार के खिलाफ है...मैं नहीं कह रहा हूं कि....यूपी और बिहार के लोगों के खिलाफ राज का विरोध सही है....लेकिन ये सोचने वाली बात है....कि आखिर क्यों यूपी और बिहार के लोगों को ही पूरे देश में जिल्लत झेलनी पड़ती है...आखिर क्यों असम, दिल्ली, मुंबई और मेट्रो सिटीज में इनका विरोध होता है...हम कब तक हम सब एक हैं का नारा बुलंद करेंगे....हम तभी एक हो सकते हैं....जब हम अपना विकास करेंगे....अपने क्षेत्र का विकास करेंगे.....कब तक दूसरे राज्यों में जाकर खुद को भारतीय कहकर बचाते रहेंगे....आखिर क्यों यूपी और बिहार से ही ट्रेनों में भर लोग दूसरे राज्यों में जाते हैं.....हम क्यों बड़े होते ही दिल्ली मुंबई का रूख करते हैं.....क्यों नहीं हम बिहार और यूपी में रहने की सोचते हैं....क्यों हमें नौकरी यूपी और बिहार के बाहर ही दिखती है.......आखिर कब खत्म होगा हमारा इंतजार....कब....मीडिया की बात करें तो इसमें ज्यादातर लोग यूपी और बिहार से हैं....लेकिन ये लोग केवल बात करने और लिखने के अलावा कोई कारगर उपाय नहीं दे पाए हैं....आखिर क्यों......क्यों कि उन्हें केवल खुद को प्रमोट करने से मतलब होता है....दूसरों से नहीं.....खेर छोड़िए ये सब....आप भी सोचिए क्यों यूपी और बिहार के लोगों के साथ ऐसा होता है....और इस पर अपना मत दीजिए....

राहुल की दलित बस्ती यात्रा का असर

राहुल गांधी के पास गांधी खानदान के होने के अलावा कोई पहचान नहीं थी॥लेकिन जब से उसने दलित बस्ती की यात्रा की है ....देश का एक लोकप्रिय नेता बन गया है....अब ये बात दूसरी पार्टियों को कैसे हजम होती कि....उनके दलित वोट बैंक में सेंध लगे...अब यूपी में तो मायावती रही...राजसी ठाट बाट वाली...उन्हें दलितों के घर जाना कहां सुहाता है...सो वो राहुल गांधी पर बयानबाजी में लगी रहीं....बयानबाजी से दलितों को अपने पक्ष में रखने की कोशिश कर रही हैं....राहुल गांधी के दलित प्रेम का असर बिहार में न पड़े...इससे आशंकित क्षेत्रिय दल पहले से ही तैयार हैं...औऱ खुद ही दलितों के घर जाने लगे हैं॥और खाना खाने लगे हैं....पहले लालू यादव पहुंचे अब रामविलास पासवान पहुंच रहे हैं...लेकिन इनका स्टाइल थोड़ा दूसरा है....राहुल गांधी जहां चोरी छुपे जाते हैं॥वहीं रामविलास पासवान अपने लाव लश्कर के साथ जाते हैं....और साथ में मीडिया को भी बुला लेते हैं॥ताकि बड़ी बड़ी फोटो छप सके॥और उनके दलित प्रेम को पूरे देश में देखा जाए...खैर छोडिए....राहुल गांधी के दलित बस्ती जाने का एक फायदा दलितों को तो जरूर हुआ है....कम से कम नेता उनके चौखट पर तो आने लगे....भले ही कुछ करें या न करें...पहले ही कहां कुछ करते थे....लेकिन अब जब धूप में घूमना पड़ेगा तो उन्हें कुछ तो लोगों की समस्याओं का अहसास होगा.....राहुल बाबा कोशिश जारी रखअ....कोशिश जरूर रंग लाई....अउरू केहु खाते नहीं लेकिन कांग्रेस के नईया जरूर पा लागी...

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

ड्रैगन के 50 साल पूरे होने पर मीडिया का उतावलापन

आज चीन की 50 वीं सालगिरह है...आज के दिन ही चीन में कम्यूनिस्टों का शासन स्थापित हुआ था.. चीन अपना 50 सालगिरह मना रहा है...लेकिन भारत में मीडिया पूरी तरह से उसे कवर कर रही है...ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था...ये बात कुछ हजम नहीं हुई..हर देशों के सालगिरह मनाए जाते हैं...लेकिन मीडिया इतना उत्सुक नहीं रहता है...दुनिया का सबसे शक्तिशाली अमेरिका के सालगिरह पर भी मीडिया इतना उतावला नहीं होता..लेकिन चीन की 50 वीं सालगिरह पर इतना उतावलापन क्यों ...हमें लगता है कि...ये सब लाइव विजुएल का कमाल है...जो विजुएल देखने में जितना अच्छा होता है...इलेक्ट्रनिक मीडिया उसे उतना ही विशेष मानती है...वैसे ही चीन के सालगिरह के मौके पर बीजिंग में भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया...और रंगारंग कार्यक्रम रखा गया...और ये सब इलेक्ट्रनिक मीडिया के लिए सबसे उत्तम क्वालिटी होती है...इसी वजह से इस कार्यक्रम को पूरी तरह से कवर किया गया...कई चैनलों ने तो बाकायदा कार्यक्रम को लाइव दिखाया.....यहां अपने देश के कार्यक्रमों में बड़ी मुश्किल से चैनल दिखा पाते हैं....भाई इलेक्ट्रानिक मीडिया का एक ही उद्देश्य है...जो देखा जाने लायक हो उसे ही यूज करो...नहीं तो फेंक दो...जिस विजुएल में भयंकर आग हो उसे चलाओ...लेकिन उस विजुएल को मत चलाओ...जिसमें आग बुझ चुकी हो...भले ही उससे लाखों घर बर्बाद हो चुके हों.....

रविवार, 20 सितंबर 2009

शशि कान्त सिंह

आज से शुरू हो रहा है

गुरुवार, 1 जनवरी 2009

आतंकी घटनाओं में क्वालिटी

२००८ के अंत शायद देश के लिए सबसे शर्मनाक था॥हम इस संदर्भ में नहीं कह रहे है। कि इस साल के अंत में मुंबई कई होटलों को निशाना बनाया गया॥बल्कि इसलिए कह रहा हूं कि (यहां मेरा ये मानना नहीं है कि मुंबई में आतंकी हमला छोटा था) क्योंकि इस हमले के बाद पेपरों और चैनलों को एक मुद्दा मिल गया भुनाने के लिए। ये मुद्दा केवल चैनलों को ही नहीं बल्कि राजनीतिक दलों को भी मिल गया। चैनलों और राजनीतिक दलों ने मिलकर इस मुद्दे को भुना रहे हैं। ये मै नहीं कह रहा हू बल्कि चैनलों के कामों को से खुद जाहिर होता है। मैं यहां ऐसे आतंकी हमले का जिक्र करना चाहता हूं, जो किसी होटल में नहीं या न ही किसी मेट्रो सिटी में हुआ, ये हमला हुआ कश्मीर में। यहां सेना और आतंकियों में ३१ दिसंबर से ही मुठभेड़ जारी थी, लेकिन ये घटना चैनलों के लिए राष्ट्रीय महत्व की तब तक नहीं हुई, जब तक कि इस मुठभेड़ में सेना के जवान और कर्नल शहीद न हो गए। जवानों के शहीद होने पर ये घनटा देश पर हमला हुआ, चैनलों की नजर में किसी भी आतंकी घटना तब तक कोई बड़ी घटना नहीं होती जब तक कि उसमें कुछलोगों की मौत न हो जाए। २००९ के पहले ही दिन असम में तीन धमाके हुए, और कई लोगों की जाने गई। लेकिन चैनलो और देश के लिए उतनी बड़ी नहीं थी, इसके दो कारण है, एक तो ये आतंकी घटना किसी मेट्रो में नहीं हुई और दूसरी इस घटना में राजनीतिक दल ज्यादे इंटरेस्ट नहीं ले रहे थे। मै अब बात करता हू कश्मीर में हुए आतंकी घटना की जहां चैनलों की नजर तब पड़ी जब इस घटना में सेना के जवान शहीद होने लगे। तब जाकर ये हमला देश पर हमला माना गया।